कहानियाँ 8

1"हिम्मत मत हारो"

एक दिन एक किसान का गधा कुएँ में गिर गया ।वह गधा घंटों ज़ोर -ज़ोर से रोता रहा और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिऐ और क्या नहीं। अंततः उसने निर्णय लिया कि चूंकि गधा काफी बूढा हो चूका था,अतः उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था;और इसलिए उसे कुएँ में ही दफना देना चाहिऐ।

किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएँ में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है ,वह और ज़ोर-ज़ोर से चीख़ चीख़ कर रोने लगा । और फिर ,अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।


Rajasthani ONE hindi kahaniya story

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सब लोग चुपचाप कुएँ में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएँ में झाँका तो वह आश्चर्य से सन्न रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।

जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे -वैसे वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एस सीढी ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएँ के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।

ध्यान रखे, आपके जीवन में भी तुम पर बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जायेगी ,बहुत तरह कि गंदगी आप पर गिरेगी। जैसे कि ,आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा ,कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण तुम्हे बेकार में ही भला बुरा कहेगा । कोई आपसे आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे। ऐसे में आपको हतोत्साहित होकर कुएँ में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख लेकर,उसे सीढ़ी बनाकर,बिना अपने आदर्शों का त्याग किये अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।

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2दादी की मीठी चिज्जी

एक दिन मुंबई के लोकल ट्रेन में सफ़र कर रही थी। दोपहर का समय था इसलिए ज़्यादा भीड़ नहीं थी, सो बैठने के लिए जगह भी मिल गई। सामने वाले बेंच पर एक बहुत ही बुड्ढी औरत बैठी थी। सारा बदन झुर्रियों से भरा, बिना दाँत का मुँह भी गोल-गोल, सफ़ेद बालों का सुपारी जितना जूड़ा, और हाथ में एक थैला था जिसमें चिप्स, नमकीन, कुछ मिठाइयों के पैकेट। शायद अपने नाती-पोतों के लिए ये सब चीज़ें ले जा रही हैं दादी जी... सोचकर ये बात बड़ी मज़ेदार लगी।

एक दो स्टेशन जाने के बाद वो दादी उठी, हाथ-पैर थरथर काँप रहे थे, बैठे हुए लोगों का कंधा और जो भी सहारा मिले, पकड़-पकड़कर आगे बढ़ने लगी।मैं हैरान तब हुई जब वह बुढ्ढी औरत अपनी धीमी गहराती आवाज़ में कहने लगी, ''चिप्स, मिठाई ले लो, अपने बच्चों को खुश करो।''
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जब तक मेरे कान पर वो शब्द पड़े, दादी काफ़ी आगे निकल चुकी थी। वहाँ भी उसका चिप्सले लो. . मिठाई ले लो. . .चल ही रहा था। मेरे मन में आया कि एक कोई चीज़ इससे ख़रीदनी चाहिए। लेकिन मुझे अगले स्टेशन पर उतरना था और वह औरत मुझसे काफ़ी दूर निकल गईथी। समय बहुत कम था, शायद उतनी देर में कोई चीज़ लेना और पैसे चुकता करना संभव नहीं था। फिर यह भी लगा कि 'क्या करना अपना बोझ बढ़ा कर,पहले ही मेरा थैला समान से ठसा-ठस भरा हुआ है, और मैं चुप बैठी स्टेशन की राह देखने लगी। जहाँ मैं बैठी थी वहाँ से दूर दिखाई दिया कि एक आभिजात्य घराने की सी लगती महिला ने काफ़ी समान उससे ख़रीद कर उस दादी को जीवन-यापन के इस कठिन कार्य में मदद कर दी। वह देखकर मुझे अच्छा तो लगा, पर खुद को कोसती रही कि अगर मैंने भी दो प्यार भरे बोल बोल के उसकी दुखभरी ज़िंदगी में कुछ तो खुशी दी होती तो शायद मैं उस खुशी को ज़िंदगी भर अपने दिल में सँजो कर रख सकती।
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आज भी मुझे उस दादी से मिलने की बड़ी ख्वाहिश है। उसके पास से चिज्जी ले कर अपने बेटे को 'दादी की चिज्जी' कहकर खिलाना चाहती हूँ क्योंकि बातों ही बातों में मैंने उसे दादी के बारे में काफ़ी बताया था (शायद यह सोचकर कि जो ग़लती मैंने की, मेरा बेटा आगे ज़िंदगी में नकरें)। यदि आपको भी ऐसी दादी कहीं नज़र आए तो इधर-उधर कुछ भी सोचे बिना मदद का हाथ आगे बढ़ाएँगे ना? उसे जरूरत है हमारे दो मीठे बोलों की, मदद के हाथों की, शायद सहानुभूति उस जैसी खुद्दार को पसंद ना भी आए।


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